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कांटेस्ट: कविता – जब मैंने ध्वज फहराया

Abhivyakti
Abhivyakti
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जब मैंने ध्वज फहराया

जब मैंने अपने देश, भारत का ध्वज, तिरंगा फहराया
तब मुझे कुछ याद आया

याद आया –
जंजीरों में जकड़ा हुआ भारत
याद आया वो मौसम
जब फैला था चारो ओर गुलामी का तम
और याद आया वो काल
जो लाया था गुलामी का परकाल

फिर याद आया –
वो जूनून
वो देश के लिए मर मिटने कि भावना
वो बच्चों और औरतों का भी स्वतन्त्रा-संग्राम में कूद पड़ना
वो नौजवानो का पढाई छोड़
फाँसी के फंदे पर झूलना
वो भारत माँ कि दबी-दबी सी सिसकी,
उदासी, लाचारी, बेबसी थी आंखों में जिसकी

और याद आया
वो १५ अगस्त १९४७ का सुनहरा दिन
जो अपने संग आजादी का सूरज लाया
आजाद पंछी, आजाद हवा और आजाद ख्याल लाया
गुलामी कि काली कोठरी से निकल उस दिन
आजादी के सूरज के निचे, भारत आया
वो हर्ष, वो उल्लाश, वो उन्माद
कैसा लगा होगा जब मिली थी आजादी वर्षो बाद?
शायद ऐसा लगा होगा मानो खोयी हुई दौलत मिल गई
या ऐसा जैसे मनचाही किस्मत मिल गई

फिर याद आया –
वो दौर जब गरीबी, बेरोजगारी और साम्प्रदायिकता
से दिन रात झूंझ रहे थे नेता
याद आया शिशु भारत का बार – बार गिरना
और प्रयत्न कर सम्भलना
शिशु भारत को हर तरह से विकसित कर
सबल युवा बनाने कि हर कौशिश करता भारतीय नर
और अचानक कुछ याद आया
जिसने मेरे दिल को सहमाया
ऐसा क्या याद आया ,
जो संग आँसू लाया ?

याद आया –
कि जो आजादी वर्षो के संगर्ष के बाद मिली
वो धीरे – धीरे जा रही है लूटी
कोई मेरे प्यारे भारत कि आजादी रहा है छीन
पल -पल गुलामी कि ओर हमें रहा है खीच
पर कौन ???

भ्रष्टाचार, हाँ भ्रष्ट्राचार
जो अपना अंधेर साम्राजय फैलाये जा रहा है
और नवयुवा भारत के लहू में घुल, उसकी रगों में दौड़ रहा है
भ्रस्टाचार से लड़ने के लिए सैनिक करने होंगे तैयार ऐसे
सचाई, ईमानदारी, देशप्रेम, बलिदान और सहस जैसे
फिर जो आजादी मिलेगी
वही सची आजादी कहलायेगी

अचानक किसी कि आवाज़ कानों में पड़ी
और विचारों कि प्रवाहधारा टूटी

और फिर होश आया –
कि में तो ध्वज फहरा रही थी
इतने विचार, ऐसा अहसास
केवल एक पल के कर्म से
मैं आश्चर्यचकित थी.
मैं आश्चर्यचकित थी
….. जब मैंने ध्वज फहराया.

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